Neha Sri

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क्रािन्त या मृगतृष्णा

अप्रैल २०११ – भारत को क्रिकेट वर्ल्ड कप जीते एक हफ्ता ही हुअा था। देश अभी भी जीत के मद मे मदहोश था अौर होता भी क्यूँ नही, अाखिर २८ साल बाद यह िदन देखने को नसीब हुअा था। लेकिन जीत कि खुशियाँ मना रहे लोग, यह कल्पना भी नहीं कर सकते थे िक भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाया गया एक जन आंदोलन देश भर के जन मानस को हिला के रख देगा । एक ७० वर्शीय पूर्व सैनिक से सामाजिक कार्यकर्ता बने, श्री अन्ना हजारे िदल्ली के रामलीला मैदान में खड़े हो कर, मुख्यधारा मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से, करोड़ो लोगों को िकसी जन लोकपाल बिल के बारे में बता रहे थे। उनका मानना था कि लोकपाल बिल भ्रष्टाचार से निपटने का एक कारगर अस्त्र साबित हो सकता है।

कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही UPA की सरकार द्वारा, बड़े पैमाने किये जा रहे भ्रष्टाचार के कारण, हर नागरिक के मन में सरकार के प्रति जबरदस्त अाक्रोश भरा हुअा था । तभी अाया यह जनलोकपाल आंदोलन जिसका नेतृत्व अन्ना हजारे अौर उनकी टीम में शामिल अरविन्द केजरीवाल, किरन बेदी, प्रशाँत भूषण, इत्यादी कर रहे थे । इस अांदोलन ने भारत की जनता का ध्यान कुछ यूँ आकर्षित किया कि सैकड़ों भारतीय भ्रष्टाचार के खिलाफ एक विश्वसनीय अावाज खोजते, देश की सड़कों पर उतर अाये थे। देखते ही देखते यह अांदोलन भारतीय जनता की न िसर्फ एक भ्रष्ट बल्कि स्वयं के भ्रष्टाचार के प्रति उदासीन सरकार के खिलाफ चल रही लड़ाई का प्रतीक बन गया था। इस अांदोलन को मिल रहे जनता व विपक्ष के जबरदस्त समर्थन के कारण सरकार को हार कर अन्ना व साथियों को बातचीत के लिये बुलाना ही पड़ा । लेकिन जब एेसा लगने लगा कि धुंध के बादल अब छट जायेंगे तभी अचानक से सब िततर-बितर हो गया़़़़

लोकपाल अांदोलन असंवैधानिक व अव्यवहारिक रूप से चलाये जाने के कारण ठंडा पड़ गया ; केजरीवाल जो अब तक अन्ना के अांदोलन के कारण देश में जाने जाने लगे थे, उन्होने इस अांदोलन से मिली प्रसिद्धी का लाभ उठा कर, अपने ही सिद्धान्तों को कुचलते हुये, एक राजनैतिक दल बनाने का निर्णय लिया। अांदोलन के दौरान अन्ना व साथियों ने राजनीति को न सिर्फ कीचड़ कहा था बल्कि यह भी कहा था िक वह स्वयं इस कीचड़ में कभी नहीं उतर सकते, पर हुअा उसका उल्टा। केजरीवाल उसी कीचड़ में उतर गये जिसकी कुछ ही िदन पहले वे घोर निन्दा कर रहे थे। अांदोलन राजनीति में जैसे ही बदलने लगा, कई दिग्गजों ( मुख्यता िकरण बेदी इत्यादी ) ने उससे िकनारा कर लिया। ताबूत में अाखिरी कील तब गड़ी जब अन्ना ने भी केजरीवाल का साथ यह कह कर छोड़ िदया िक वे अपने सिद्धान्तों पर अटल रहते हुए, राजनीति से दूर रहकर ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहेंगे।

इस प्रकार नवम्बर २०१२ में एक नई व महत्त्वाकांक्षी पार्टी ने केजरीवाल के नेतृत्व व कई वामपंथी झुकाव रखने वाले बुद्धिजीवियों की अध्यक्षता में जन्म लिया। इस “अाम अादमी पार्टी” ने यह निर्णय लिया कि वह २०१३ के िदल्ली प्रदेश के चुनावों में िहस्सा लेगी। जनता की भावनाअों का प्रयोग कर के पार्टी बनाना एक बहुत ही समझदारी भरा कदम था; केजरीवाल के भीतर छुपा राजनैितज्ञ बाहर अा चुका था।

नींव पड़ने के बाद से ही, अाम अादमी पार्टी ने अारोप-प्रत्यारोप की राजनीति में महारत हासिल कर ली है। प्रसिद्धी हासिल करने का “अाप” ने एक नया रास्ता खोज निकाला है, स्थापित नेताअों पर खोखले सबूत िदखा कर बेबुनियाद अारोप लगाना, अौर उस नेता को बिना किसी कानूनी कार्यवाही के, मीडिया द्वारा चरित्र हत्या कर उसे दोषी करार देना।

यदि उनके पास वाकई िकसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ कोई सबूत थे, तो अादर्श रूप से न्यायालय में मुकद्दमा दाखिल कराना चाहिये था जैसा कि किरीट सोमय्या व डॉ सुब्रमन्यन स्वामी हर समय करते हैं। एेसे में यह सोचने की बात है कि प्रशाँत भूषण जैसे दिग्गज पार्टी में होते हुये भी, इस पार्टी ने अाज तक सबूतों के बल पर कानूनी कार्यवाही क्यों नही शुरु की।

“अाप” ने सांप्रदायिक राजनीति खेलना भी शुरु कर िदया; एक अत्यन्त भयावह राजनैितक अस्त्र िजसके प्रयोग से कई पार्टियां, देश को िवभिन्न वोट-बैकों में बाँट कर स्वयं को सत्ता के गलियारों में रखने में सफल हुई हैं। बाटला हाउस एंकाउन्टर पर सवाल उठाना इसी ़िघनौनी राजनीति का उदाहरण है। िदल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा उस अातंकवादियों के खिलाफ हुए आॅपरेशन में शहीद हो गये थे, एेसे में उस आॅपरेशन कि सच्चाई पर सवाल उठाना, उनकी शहादत का घोर अपमान है। बहुजन समाज पार्टी व समाजवादी पार्टी ने वोट-बैंक के खातिर, उस एंकाउन्टर पर अदालती जाँच की माँग की थी, लेकिन इस अाम अादमी पार्टी ने एक कदम अागे जा कर जनहित याचिका दाखिल कर दी।

यह याचिका प्रशाँत भूषण द्वारा दािखल की गयी थी, वही प्रशाँत भूषण जो सरे अाम कश्मीर विभाजन की माँग करते हैं। यह गौरतलब है कि प्रशाँत भूषण, उच्चतम न्यायालय के वकील हैं इसके बावजूद उन्होंने मेधा पाटकर व अरुन्धति रौय जैसे वामपंथियों के साथ मिलकर, उच्चतम न्यायालय के सरदार सरोवर बाँध के संदर्भ में दिये गये अादेश की निन्दा की थी। इस टीम के सबसे समझदार दिखने वाले योगेन्द्र यादव, अरुना राय, व मनीश सिसोिदया, यह सभी सोनिया गाँधी की NAC के सदस्य रह चुके हैं तथा सिसोदिया के विदेशी वामपंथी ताकतों के साथ सम्बन्ध किसी से छुपे नहीं हैं। हाल ही में कमल मित्र चिनौय जिन्होंने खुले अाम ट्विटर पर यह कहा था कि देशी व विदेशी ताकतों को मिलकर भारत के खिलाफ कश्मीर की अाज़ादी के लिये लड़ना चाहिये, भी कम्यूनिस्ट पार्टी छोड़ कर, अाम अादमी पार्टी में शामिल हो गये हैं।

विवादास्पद मौलानाअों से मिलना पार्टी की छवि में कुछ खास सुधार नहीं ला रहा है। मौलाना तौकीर रज़ा जो तसलीमा नसरीन के खिलाफ फतवा जारी करने के लिये कुप्रसिद्ध हैं, उनसे गले मिलकर श्री अरविन्द केजरीवाल जी क्या करना चाहते थे ये तो सभी को मालूम है। यदि “अाप पार्टी” वाकई साम्प्रदाियकता में विश्वास नहीं करती अौर सेक्यूलारिज़्म का ढिंढोरा पीटना चाहती है, तो उसे सभी धर्मों के गुरुअों से बराबर दूरी बनाये रखनी चाहिये या सभी धर्मों के गुरुअों से समान रूप से गले मिलना चाहिये। यह पार्टी दोनों ही नही करती अौर यही उसकी शैतानी और भयावह विचार प्रक्रिया को दर्शाता है। यह तथ्य व आप सदस्यों का अतीत अत्यन्त महत्वपूर्ण है अौर भारत की जनता को मत डालने से पहले इस पहलू पर विचार करना चाहिये।

केजरीवाल जी दिल्ली चुनावों के संदर्भ में निरन्तर कहते रहे कि उन्होंने सभी उम्मीदवारों की कड़ी चयन प्रक्रिया द्वारा सिर्फ साफ उम्मीद्वारों को चयनित किया था, इसके बावजूद उनकी पार्टी ने कई एेसे लोगों को टिकट िदया जिनके खिलाफ़ अापराधिक मुकद्दमे दर्ज हैं। चुनाव से ठीक पहले एक टीवी चैनल ने सनसनीखेज़ स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से आम अादमी पार्टी के कई दिग्गज नेताअों को शंकास्पद गतिविधियों में लिप्त दिखाया लेकिन अाम अादमी पार्टी ने काँग्रेस पार्टी की राह पर चलते हुए स्वयं ही अपने नेताअों को साफ बता डाला।

चुनाव में मिली सफलता के बाद काँग्रेस की मदद से सरकार बनाने वाली यह पार्टी िदल्ली में अजीब ढंग से सरकार चला रही है। जनता को मुफ्त पानी, बिजली देने का एेलान तो कर दिया, लेिकन वह भी सब्सिडी के माध्यम से अर्थात जनता तो कम शुल्क भरेगी लेकिन िदल्ली के सरकारी खजाने से बिजली कंपनियों को बकाया पैसा मिलेगा। अब इनसे कोई पूछे कि बिना पानी कि लाइनें ठीक किये, व बिना िबजली की चोरी रोके, जनता के कर के पैसे से बना सरकारी खज़ाना प्राईवेट कंपनियों को थमा देना, ये किस प्रकार की राहत है? जिन गरीबों के पास मीटर वाले खराब थे या जिनके घरों में नल में पानी नहीं अाता था, वह परेशािनयाँ तो उसी प्रकार बनी हुई हैं, एेसे में यह मुफ्त बिजली पानी का फायदा अाखिर किसे मिल रहा है?

उसके अलावा िदल्ली से अाती कई खबरें चिंताजनक हैं। िदल्ली के अाम अादमी पार्टी के स्वास्थय मंत्री ने अाते ही रोगी क्लयाण समिति को भंग कर दिया। जब उनसे यह पूछा गया कि इन समितियों की जगह अब कौन भरेगा, तो उन्होंने जवाब दिया कि अभी उन्होंने इस बारे में सोचा नहीं है। अस्पतालों में पड़ताल करने पर सामने अाया चित्र तो अौर भी भयावह था ! रोेगी क्लयाण समितियों की जगह अाप पार्टी कि टोपी लगाये कार्यकर्ता हस्पताल चला रहे थे, डॉक्टर व नर्सों पर चिल्ला रहे थे, अौर तो अौर यह कार्यकर्ता प्रसव कक्षों में व शल्य चिकित्सा कक्षों में घुस कर डाॅक्टरों पर हुक्म चला रहे थे।

हाल ही में दिल्ली के अाम अादमी पार्टी के कानून मंत्री सोमनाथ भारती, जो कि पेशे से वकील हैं, उन पर अदालत ने अपने मुवक्किल के बचाव करने के चक्कर में सबूतों का फर्ज़ीवाडा करके अदालत को गुमराह करने का संगीन अारोप लगाया है। बचाव में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि अदालत ने भारी गलती की है। पर कानून मंत्री के सुर अदालत द्वारा लगाये गये अारोपों से थमे नहीं हैं। कुछ ही दिन पहले मुहल्ले वाले लोंगो के कहने पर मंत्री महोदय ने बेकसूर युगान्डा कि नागरिक महिलाअों पर ड्रग्स बेचने का अारोप लगाया अौर पुलिस के बिना वारेन्ट के तलाशी लेने की माँग की। पुलिस के मना करने पर, अाप पार्टी के कार्यकर्ताअों ने उन महिलाअों के साथ बदसलूकी कि, उन्हें मारा व अभद्र रूप से छेड़छाड़ की। पुलिस नेताजी द्वारा समर्थित इन कार्यकर्ताअों की मनमानी देखती रही। इस हादसे से परेशान होकर युगान्डा व नाईजीरिया के राजनयिकों ने भारत के विदेश मंत्रालय से बातचीत कर चिंता ज़ाहिर की है। विदेश मंत्रालय ने उन्हें अाश्वासन दिया है कि इस प्रकार की बदसलूक़ी दुबारा नहीं होगी परन्तु अरविंद केजरीवाल का कहना है कि सोमनाथ भारती ने कोई गलती नहीं िक है अौर वे हर हाल में उनका समर्थन करेंगे। यहाँ तक की अरविंद का कहना है कि पुलिस ने सोमनाथ के अादेशों कि अवहेलना कर के मंत्री का अनादर किया है, इसलिए वह दिल्ली का कामकाज छोड़ कर ग्रह मंत्रालय के सामने धरने पर बैठ जायेंगे।

यह गौरतलब विषय है कि महिलाअों को सुरक्षा दिलाने के बड़े बड़े वादे करने वाली अरविंद केजरीवाल सरकार के काल में एक विदेशी महिला का बलात्कार हुअा व पूछे जाने पर इस सरकार ने भी पिछली सरकार की तरह यह कह कर किनारा कर लिया कि दिल्ली पुलिस कि कमान उनकी सरकार के हाथ में नहीं है। यह वही अरविंद केजरीवाल हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दिक्षित का टीवी चैनलों पर मज़ाक बनाया करते थे िक पुलिस हाथ में न होने का सिर्फ बहाना है अौर वास्तव में शीला कुछ करना नहीं चाहती अौर अपरािधयों को शरण देती िफरती हैं।

इस पार्टी के सदस्य वर्तमान में एक दूसरे का गला पकड़ते नज़र अा रहे हैं। कोई सदस्य प्रैस काॅन्फ्रैंस बुलाकर केजरीवाल को झूठा अौर तानाशाह बोलता है तो पार्टी का एक प्रवक्ता दूसरे सदस्य को टीवी चैनल पर डाँटने लगता है। एक सदस्य जो केजरीवाल के FDI से सम्बन्धित निर्णय पर सवाल उठा रही थी, उन्हें पार्टी से टीवी स्टूडियो में बैठे-बैठे ही SMS के जऱिये बाहर निकाल दिया। अपने ही अन्तर द्वंदों में उलझी यह पार्टी का एकमात्र सिद्धान्त है स्वयं को दूसरों से बहतर होने का दावा करना। हालाँकि दिल्ली के हालात कुछ अौर ही कहानी कहते सुनाई पड़ रहे हैं।

संक्षेप में, इन मुद्दों के इलावा यदि राष्ट्रीय मुद्दों की अोर भी देखा जाये तो “अाम अादमी पार्टी” के पास देश की अार्थिक या विदेश नितियों के रूप में सामने रखने को कुछ भी ठोस नहीं है। भारत कि सुरक्षा से जुड़े मुद्दे, भारत की चीन व पाकिस्तान नितियाँ, अार्थिक नीतियाँ, जन स्वास्थय नीतियाँ, लोकसभा चुनाव के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह पार्टी जिसके अधिकतम सदस्य वामपंथ में विश्वास रखते हैं, अभी तक अपनी राष्ट्रीय नीतियों को लेकर चुप्पी साधे हुए है परन्तु अधिकतम लोक सभा सीटों से चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है।

पाकिस्तानी व चीन की घुसपैठ में होती बढोतरी, पाकिस्तान कि तरफ से निरन्तर होते संघर्ष विराम के उल्लंघन, मंहगाई की मार, भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन जैसे तमाम मामलों को मद्देनज़र रखते हुए क्या एक विरोेधाभासों से िघरी पार्टी को लोकसभा में बैठाना सही होगा?

अब तक हुए दर्ज़नों साक्षात्कारों में जितनी भी बार अरविंद केजरीवाल या अाम अादमी पार्टी के किसी भी प्रवक्ता से इन ज्वलन्त विषयों के बारे में पूछा गया, उन्होंने सदैव इन सवालों को टाल दिया। दिल्ली चुनाव से पहले यह कहकर कि सिर्फ दिल्ली के बारे में बात करेंगे, अौर चुनावोपरान्त यह कहते हैं िक पार्टी ने निर्णय नहीं लिया है।

अाम अादमी पार्टी ने शुरुअात से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ अावाज़ उठाई है लेकिन लोक सभा चुनाव कोई भी पार्टी सिर्फ एक ही मुद्दे पर नहीं लड़ सकती अन्यथा इस पार्टी का अन्तर-द्वंद, वी०पी० सिंह सरकार की तरह भारत को एक लचर व कमजोर सरकार के सिवा कुछ नहीं दे पायेगा अौर यह मेरी राय नहीं, यह इतिहास की नसीहत है।

भारत पर इस समय सम्पूर्ण विश्व की नज़र है। इस शताब्दी कि शुरुअात में भारत का लोहा दुनिया ने मान लिया था अौर यह अर्थशास्त्र के महा-पंिडतों ने यह भविष्यवाणी की थी यह शताब्दी भारत-चीन-ब्राज़ील-रूस की शताब्दी होगी। परन्तु पिछले दस सालों में इस सूची के बाकी के देश, दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करते गये, अौर हम दिन पर दिन नीति पक्षाघात (policy paralysis) अौर घटिया जनवादी नितियों के कारण िपछड़ते गये। मेरी नजर में भारत इस समय उस मोड़ पर खड़ा है जिसमें वह या तो वह पुरजोर अात्मविश्वास के लैस, विकास की राह में स्वयं को स्थािपत कर सकता है या अपने ही अन्तरद्वंदो में उल़झ कर विकास कि राह से भटक सकता है। एेसे में क्या हम भारत को प्रयोगशाला में तब्दील करने का जोखिम उठा सकते हैं? यह निर्णय तो भारत की जनता को करना है।

जय हिन्द।

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